यह है यह है मिस्टर स्टीव जॉब्स। एप्पल के संस्थापक। 2011 में। उनकी मृत्यु से 1 सप्ताह पहले यह फोटो लिया गया जिसने पूरी दुनिया को झकझोर दिया। स्टीव जॉब्स के ऊपर कई फिल्में बनी पूरी दुनिया में। तकनीकी। वह इनोवेशन में रुचि रखने वालों के स्टीव जॉब्स आइडियल रहे हैं। वह एक लंबे समय से अग्नाशय के कैंसर से पीड़ित थे। बहुत इलाज कराने के बावजूद वह ठीक नहीं हो सके। और 2011 में उनकी मृत्यु हो गई।
मैं भी विज्ञान और तकनीकी में रुचि रखने वाले विद्यार्थी के नाते स्टीव जॉब्स को पसंद करता था। हालांकि यह पिक्चर देखकर मुझे बड़ा झटका लगा। कितनी बेबसी है एक दुनिया के सबसे सफल उद्योगपति, विद्वान, और तकनीकी विशेषज्ञ चेहरे पर।
स्टीव जॉब्स अपनी कंपनी में, अपने अनुशासन, समय की पाबंदी, प्लानिंग और किसी भी कीमत पर समय पर काम करवाने के लिए जाने जाते थे। अगर वह कुछ प्लान करते थे। तो वह किसी भी कीमत पर उस चीज को पाना चाहते थे चाहे उसके लिए उन्हें अपनी ही कंपनी के अधिकारियों कर्मचारियों से लड़ना पड़े या उनको नौकरी से निकालना भी पढ़े।
उनके चेहरे की यह बेबसी जीवन की वास्तविकता प्रकट करती है। शायद उन्होंने अपने जीवन में ऐसा पहली बार महसूस किया होगा। पहली बार। वह परिस्थितियों के सामने अपने आप को झुका हुआ देख रहे होंगे। जीवन की वास्तविकता। कितनी कठोर और निष्पक्ष है? यह किसी में अंतर नहीं करती। जीवन की वास्तविकता जवाब से टकराती है। तो ये नहीं पूछती कि आप कौन हैं? और इंसान के बनाए हुए सभी पद, प्रतिष्ठा,धन और इज्जत रखी रखी रह जाती है। तंत्र विज्ञान में मृत्यु को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण माना गया है। जीवन से ज्यादा वह मृत्यु को महत्व देते हैं। तंत्र की पूरी विद्या मृत्यु के आडंबरओं के आसपास भटकती है।
अध्यात्म कहता है कि मृत्यु को जाने बिना जीवन को नहीं जाना जा सकता। जीवन की भागदौड़ में। हम इतने व्यस्त होते हैं। की वास्तविक सच्चाई दिखाई नहीं पड़ती जीवन धुंधला है। लेकिन मृत्यु पूर्ण शाश्वत और प्रत्यक्ष दिखती है होती हुई कल ही था वह व्यक्ति मेरे साथ बैठा हुआ था बात कर रहा था आज नहीं है। मर गया मृत्यु साक्षात शाश्वत प्रत्यक्ष सत्य है।
अब मैं क्या अनसुलझा रहस्य उलझते हुए देखना चाहता हूं?
अगर मृत्यु और जन्म सत्य है तो क्या उनके बीच का जो समय है क्या यह केवल एक भ्रम है? जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है? अगर एक स्टीव जॉब्स जैसा व्यक्ति अंत में इसी तरह मृत्यु का शिकार होता है। तो फिर मेरे जीवन में सफलता और जीवन भर उसी को पाने का प्रयास क्या व्यर्थ है? क्या हम एक निश्चित अंतराल के लिए बनाई गई। कठपुतलियां है। जो परिस्थितियों के सामने अंतता। नष्ट ही होने वाली है। अगर सत्य ही जीवन का लक्ष्य है तो मैं उसको साक्षात प्रकट, दृश्य और प्रत्यक्ष देखना चाहता हूं ना कि जीवन की विपरीत परिस्थितियों के बीच में उलझा हुआ कमजोर ,घुटने टेके हुए रेंगता हुआ।
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