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50 साल पुराने कैंपा कोला को वापस ला रहे हैं अंबानी, दाम के साथ-साथ इतिहास भी जान लीजिए

मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड (Reliance Consumer Products Limited) ने देश के एक 50 साल पुराने कोल्ड ड्रिंक ब्रैंड के रिलॉन्च की घोषणा की है. कैंपा (Campa) सुना है न? जी हां रिलायंस के साथ कैंपा इंडियन सॉफ्ट ड्रिंक बेवेरेज मार्केट में वापसी करने को तैयार है. शुरुआत में कैंपा के तीन फ्लेवर पीने को मिलेंगे. कैंपा कोला, कैंपा लेमन और कैंपा ऑरेंज. कंपनी ने टैगलाइन दी है-‘द ग्रेट इंडियन टेस्ट.’ मार्केट के जानकार कहते हैं कि रिलायंस की अपनी खुद की रिटेल चेन है, इसलिए रिलायंस के लिए ये कॉम्पिटीशन बहुत मुश्किल नहीं रहेगा.

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RCPL रोजाना इस्तेमाल की चीजों में डील करती है. RCPL ने इसी साल जनवरी में गुजरात बेस्ड कार्बोनेटेड कोल्ड ड्रिंक और जूस निर्माता कंपनी सोस्यो हजूरी बेवरेजेज प्राइवेट लिमिटेड में 50 फीसद हिस्सेदारी खरीदी थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे पहले बीते साल अगस्त में उसने प्योर ड्रिंक्स (Pure Drinks Group) से 22 करोड़ रुपये में कैंपा ब्रांड का अधिग्रहण किया था. जिसे अब रिलायंस मैन्यूफैक्चर करेगा और मार्केट में उतारेगा.

आइए पहले ये जान लें कि करीब 30 साल पहले तक जिस ब्रैंड का भारत की सॉफ्ट ड्रिंक मार्केट में बोलबाला था, वो आखिर बंद कैसे हुई?

कैंपा कोला मार्केट से गायब कैसे हुआ था?

अचानक गायब हो जाने वाले विमान और दशकों बाद उसके वापस नजर आने जैसी कोई तिलिस्मी कहानी नहीं है. लोगों का पसंदीदा कैंपा कोला शियर बिज़नेस कॉम्पिटीशन का शिकार हुआ था. साल 1949 में अपनी एंट्री के बाद से साल 1975 के आसपास तक इंडिया की पसंदीदा कोल्ड ड्रिंक कोका-कोला हुआ करती थी. मार्केट पर एकछत्र दबदबा था. मजे की बात ये है कि Coca Cola का भारतीय कारोबार मुंबई का ‘प्योर ड्रिंक्स ग्रुप’ ही संभालता था. 70 के दशक तक प्योर ड्रिंक्स ग्रुप ही भारत में कोका-कोला का अकेला डिस्ट्रीब्यूटर और बॉटलर था. वही प्योर ड्रिंक्स ग्रुप जिससे अंबानी ने कैंपा ब्रैंड अब खरीद लिया है.

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साल 1977 में इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी. तब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जार्ज फर्नांडिस संभाल रहे थे. बाद में उन्हें उद्योग मंत्रालय का प्रभार भी दे दिया गया. यही राजनीतिक घटना देश में स्वदेशी कैंपा कोला ब्रांड के आगाज की वजह बना. जॉर्ज फर्नांडिस ने मंत्रालय हाथ में आते ही देश में मौजूद सभी विदेशी कंपनियों को नोटिस जारी कर 1973 के FERA संशोधन का पालन अनिवार्य कर दिया. कई कंपनियां राजी भी हो गईं, जो नहीं हुईं उनमें एक कोका-कोला भी थी. हालांकि कोका-कोला को अपनी ड्रिंक्स की रेसिपी शेयर करने को कहा गया था. लेकिन कोका-कोला ने इसके बजाय अपना बोरिया-बिस्तर समेटना ही मुनासिब समझा.

कैंपा कोला ने कोका-कोला की जगह ले ली

कोका-कोला गई तो इसके ड्रिस्टीब्यूशन का काम संभाल रहे प्योर ड्रिंक ग्रुप ने मौके का फायदा उठाया. और Campa ब्रैंड लॉन्च कर दिया. लोग कोल्ड-ड्रिंक छोड़ दही-छाछ पर वापस आते लेकिन तब तक सरकार ने भी डबल सेवेन (77) नाम का ब्रैंड शुरू कर दिया. इधर कैंपा लोगों की जबान पर चढ़ने लगा था. 77 को तो अच्छा रेस्पोंस नहीं मिला. लेकिन कैंपा कोला लोगों का फेवरेट हो गया. कहा जाता है कि कैंपा कोला ने ही सलमान खान को पहला एड ब्रेक दिया था. इसके बाद क्या, जैसे कुछ दिन पहले फॉग चल रहा था, वैसे ही तब पार्टीज में कैंपा कोला चलने लगा.

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90 के दशक में कैंपा के बुरे दिन आ गए

90 के दशक में एक और सरकारी निर्णय लिया गया. भारत सरकार ने उदारीकरण के नियम (Liberalisation Rules) पेश किए. यही इस ब्रैंड के बुरे दिनों की शुरुआत थी. 90 के दशक के आखिर में नरसिंह राव की सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह थे. उन्होंने इंडियन इकॉनमी को उदार बनाने के लिए सुधार के नियम पेश किए. जिससे विदेशी ब्रैंड्स के लिए देश में व्यापार आसान हो गया. कोका-कोला को दूसरा मौक़ा मिला था. उसने 20 साल बाद फिर एंट्री मारी. कैंपा की टक्कर में सिर्फ कोका-कोला होता तो गनीमत थी. एक और ब्रैंड आ गया- पेप्सी. दोनों के स्वाद और जबरदस्त मार्केटिंग स्ट्रेटेजीज के आगे कैंपा का दम उखड़ गया. रेस में दोनों कंपनियां कहीं आगे निकल गईं. साल 2001 आते-आते कंपनी का दिल्ली ऑफिस और बॉटलिंग प्लांट बंद हो गया. हालांकि हरियाणा के कुछ हिस्से में कंपनी कारोबार करती रही.

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